युगानुगूॅंज की यादगार सारस्वत आयोजन
पटना!
मौर्य साम्राज्य की राजधानी रही पाटलिपुत्र की धरती पर पटना की कवयित्री डॉ निशी सिंह जी के संयोजकत्व में उनके आवास पर साहित्य,संस्कृति एवं मानवता को समर्पित राष्ट्रीय संस्था” युगानुगूॅंज ” के तत्वावधान में प्रथम काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर “युगानुगूॅंज ” साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था की बिहार राज्य की प्रमुख डॉ पंकजवासिनी के नेतृत्व में पटना के दर्जन भर जाने माने साहित्यकार एकत्र हुए । उन सबको राष्ट्रीय स्तर की युगानुगूॅंज साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था से परिचय कराया गया और दीप प्रज्वलन के पश्चात कवि सम्मेलन का आरंभ हुआ । जिसमें सभी साहित्य – अनुरागियों ने अपनी काव्यांजलि अर्पित की।
श्री कृष्ण कांत कनक जी ने दीपावली है ऐसा दीपों का त्योहार नामक सुंदर सरस कविता सुनकर आज के इस काव्य गोष्ठी में प्रथम काव्यांजलि अर्पित की। । डॉ कुंदन कुमार लोहानी की प्रस्तुति बहुत भी सुंदर और मर्मस्पर्शी रही – मार दो माॅं मुझे गर्भ में और गाय छोड़ तू कुत्ता पाला। इसके पश्चात हाजीपुर से पधारे युवा कवि अपूर्व कुमार की उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति ” श्वान ” और *हे सखे,यह जीवन क्या है/ मेरी मानो तो केवल भ्रम है। की श्रोताओं ने भूरि -भूरि प्रशंसा की l नूतन जी ने कोई लौटा दे मेरा प्यारा सा बचपन और गधा शीर्षक से उत्कृष्ट कविता प्रस्तुत कीl
साहित्य की हर विधा पर अपनी लेखनी चलाने वाले विद्वान साहित्यकार श्री सिद्धेश्वर जी ने ” ” चलती हुई सांसों का कौन हिसाब रखे और छीन लेने की चीज नहीं है मुहब्बत/ और मैं किसी की जागीर हड़पना नहीं चाहता ” जैसी उम्दा ग़ज़ल की पंक्तियों को सुना कर, सबका मन मोह लिया।
आज के कार्यक्रम की संयोजिका डॉ निशि सिंह जी ने आज के युग को वाणी देती हुए, सबसे बुरा होता है,जीते जी मर जाना /रिश्ते भी भींगते हैं अश्कों से , जब किसी अपने को किसी दिन, पराया किया है हमने, यूॅं ही और माॅं की तस्वीर निकाली, तो अचानक लगा, थोड़ी-थोड़ी माॅं जैसी लगने लगी हूॅं मैं जैसी उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत कर अपना सिक्का जमाया। उम्दा ग़ज़लकार शंकर भगवान जी ने अपनी गजल सुनाकर, इस काव्य गोष्ठी में चार चांद लगा दिया – ” सुलगती मुहब्बत को दी जो हवा है, भले वो ख़फ़ा हो, पर हमनवा है.और तुम अगर हो हमसफ़र, मंजिल मिले न उम्र भर। / तुम थको, रुक जाओ मुझमें, मैं जाऊं तुझमें ठहरl गीतकार डॉ अंकेश कुमार जी ने देकर हाथ,हाथ में तुमको, जीवन को आकार दिए ।/लेकर उम्मीदोंकी गठरी, सच सपने साकार किए।। गीत सुना कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। वहीं राज्य प्रभारी डॉ पंकजवासिनी ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की और इस काव्य गोष्ठी में अपनी काव्यांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने समसामयिकता पर केंद्रित गीत की प्रस्तुति दी -” संबंधों का नंदनकानन, लील रही है भौतिकता रे । / पारिजात सब पुष्प नेह के, कुचल दी आत्मकेंद्रिकता रे ।/ राजनीति की विसात पर अब, है मनुष्यता बनी चारा ।/ आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला है जग में अॅंधियारा । ” साथ ही आज के वक्त की नब्ज़ टटोलती एक ग़ज़ल सुनाकर उन्होंने श्रोताओं की वाहवाही बटोरी -है उजाले की जरूरत, तीरगी के दौर में।/हर किसी में है नफासत, तीरगी के दौर में।।/ आदमी को आदमी से, लग रहा है डर बहुत ।/ पीठ में खंजर घुसावत, तीरगी के दौर में। उनके द्वारा सुनाए मुक्तक ख्वाहिशें की ही नहीं कि कोई ताजमहल बनवाए..l” बस एक नन्ही सी चाहत कि वो मुझे प्यार से हेर जाए!!! की सब ने भूरि- भूरि प्रशंसा की !
डॉ पंकजवासिनी के अध्यक्षीय उद्बोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन के साथ संंन्ध्या को अविस्मरणीय बनाने वाले आज के इस शानदार काव्य संध्या की समाप्ति हुई।
प्रस्तुति -डाॅ पंकजवासिनी
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